योग: कर्मसु कौशलम्

YOGA
योग कक्षा - १

योग में प्रवेश

आइए हम योग की दुनिया में प्रवेश करें । योग शुरू करने से पहले आपको क्या जानना जरुरी है, उसके लिए यह पहला वीडियो देखें ।

योगाभ्यास करने के लिए आपको नीचे दिए गए सामान्य दिशा – निर्देशों का पालन करना चाहिए ।

योगाभ्यास के पहले

  • योगाभ्यास मल – मूत्र का विसर्जन करने के बाद शुरू करना चाहिए ।
  • योगाभ्यास खाली पेट अथवा अल्पाहार लेकर करना चाहिए ।
  • सूती के हल्के और आरामदायक वस्त्र पहनना चाहिए जिससे शरीर के अंगो का संचालन आसानी से हो सके ।  
  • योगाभ्यास करने के लिए चटाई, दरी, कंबल अथवा योग मेट का प्रयोग करना चाहिए।
  • योगाभ्यास शांत वातावरण में आराम के साथ शरीर एवं मन को शिथिल करके किया जाना चाहिए ।
योग कक्षा - 2

शिथिलीकरण (वॉर्म-अप)

शिथिलीकरण को चालन क्रिया भी कहते हैं । योगासन में पहले शिथिलीकरण करते हैं । योगाभ्यास आराम से शरीर एवं मन को शिथिल करके करना चाहिए।

योगाभ्यास के समय

  • योगाभ्यास प्रार्थना अथवा स्तुति से प्रारंभ करना चाहिए।
  • योगाभ्यास धीरे-धीरे प्रारंभ करना चाहिए, योगाभ्यास के समय शरीर को कसकर न रखें और अनावश्यक झटके न दें।
  • यदि योगाभ्यास करते समय कमजोरी महसूस हो तो गुनगुने पानी में थोड़ा सा शहद मिला कर लेना चाहिए।
  • योगाभ्यास के समय सांस नहीं रोकना चाहिए जब तक कि आपको ऐसा करने के लिए विशेष रूप से ना कहा जाए ।
  • योगाभ्यास करते समय सांस हमेशा नाक से ही लेना चाहिए जब तक कि आपको अन्य विधि से सांस लेने के लिए न कहा जाए ।
योग कक्षा - 3

सूर्य-नमस्कार

सूर्य-नमस्कार योगासनों में सर्वश्रेष्ठ है। जो लोग विस्तृत योगाभ्यास नहीं कर सकते वे केवल सूर्य-नमस्कार कर सकते है। सूर्य-नमस्कार को सर्वांग व्‍यायाम कहा जाता है। इसे करने से सभी अंगों का व्यायाम हो जाता है।

सूर्य-नमस्कार को स्त्री, पुरुष, बाल, युवा तथा वृद् ध सभी के लिए उपयोगी बताया गया है। सूर्य-नमस्कार बारह स्थितियों में किया जाता है। इसे सीखने के लिए यह वीडियो देखें।

(1) प्रणामासन : (ॐ मित्राय नमः) दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों। नेत्र बंद करें। ध्यान ‘आज्ञा चक्र’ पर केंद्रित करके ‘सूर्य भगवान’ का आह्वान ‘ॐ मित्राय नमः’ मंत्र के द्वारा करें।

(2) हस्तोत्थानासन : (ॐ रवये नमः) श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे ‘विशुद्धि चक्र’ पर केन्द्रित करें।

(3) हस्तपादासन : (ॐ सूर्याय नमः) तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे ‘मणिपूरक चक्र’ पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।

(4) एकपादप्रसारणासन : (ॐ भानवे नमः) इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को ‘स्वाधिष्ठान’ अथवा ‘विशुद्धि चक्र’ पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।

(5) दण्डासन : (ॐ खगाय नमः) श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान ‘सहस्रार चक्र’ पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।

(6) अष्टांगनमस्कारासन : (ॐ पूष्णे नमः) श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें। नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठा दें। श्वास छोड़ दें। ध्यान को ‘अनाहत चक्र’ पर टिका दें। श्वास की गति सामान्य करें।

(7) भुजंगासन : (ॐ हिरण्यगर्भाय नमः) इस स्थिति में धीरे-धीरे श्वास को भरते हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधे कर दें। गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं। घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। मूलाधार को खींचकर वहीं ध्यान को टिका दें।

(8) अधोमुखश्वानासन : (ॐ मरीचये नमः) श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान ‘सहस्रार चक्र’ पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।

(9) अश्वसंचालनासन : (ॐ आदित्याय नमः) इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को ‘स्वाधिष्ठान’ अथवा ‘विशुद्धि चक्र’ पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।

(10) उत्थानासन : (ॐ सवित्रे नमः) तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे ‘मणिपूरक चक्र’ पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।

(11) हस्तोत्थानासन : (ॐ अर्काय नमः) श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे ‘विशुद्धि चक्र’ पर केन्द्रित करें।

(12) प्रणामासन : (ॐ भास्कराय नमः) यह स्थिति – पहली स्थिति की भाँति रहेगी।

योग कक्षा - 4

योगासन

योग के इस वीडियो में, खड़े होकर किए जाने वाले आसन जैसे कि ताड़ासन, वृक्षासन, पादहस्तासन, अर्धचक्रासन, त्रिकोणासन तथा बैठकर किए जाने वाले आसन – भद्रासन, वज्रासन, उष्ट्रासन, शशकासन, मंडूकासन, भुजंगासन, तथा लेटकर किए जाने वाले आसन – जैसे मकरासन, सेतुबंधासन, उत्तानपादासन, अर्धहलासन, पवनमुक्तासन, शवासन इत्यादि का अभ्यास करें।

योग कक्षा - 5

प्राणायाम

प्राणायाम योग के आठ अंगों में से एक है। प्राण या श्वास का आयाम या विस्तार ही प्राणायाम कहलाता है। श्वास को धीमी गति से गहरी खींचकर रोकना व बाहर निकालना प्राणायाम के क्रम में आता है। श्वास खींचने के साथ भावना करें कि प्राण शक्ति, श्रेष्ठता श्वास के द्वारा अंदर खींची जा रही है, छोड़ते समय यह भावना करें कि हमारे दुर्गुण, दुष्प्रवृत्तियाँ, बुरे विचार प्रश्वास के साथ बाहर निकल रहे हैं।

प्राणायाम सभी चिकित्सा पद् धतियों में सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि इसके नियमित अभ्यास से अंग प्रत्यंग के समस्त रोग दूर होकर वे सशक्त और सक्रिय बनते हैं।

इसके प्रयोग से प्राणशक्ति व जीवनीशक्ति बढ़ती है, प्राणायाम से शारीरिक एवं मानसिक लाभ के साथ आध्यात्मिक उन्नति भी होती है।

प्राणायाम को स्त्री, पुरुष, बाल, युवा तथा वृद् ध सभी के लिए उपयोगी बताया गया है।

  • सुखासन, सिद् धासन,  पद् मासन, वज्रासन किसी भी आसन में बैठें, मगर जिसमें आप अधिक देर बैठ सकते हैं, उसी आसन में बैठें।
  • प्राणायाम करते समय हमारे हाथों को ज्ञान या किसी अन्य मुद्रा में होनी चाहिए।
  • प्राणायाम करते समय हमारे शरीर में कहीं भी किसी प्रकार का तनाव नहीं होना चाहिए, यदि तनाव में प्राणायाम करेंगे तो उसका लाभ नहीं मिलेगा।
  • प्राणायाम करते समय अपनी शक्ति का अतिक्रमण ना करें।
  • हर साँस का आना जाना बिलकुल आराम से होना चाहिए।
योग कक्षा - 6

ध्यान

ध्यान योगाभ्यास का सबसे महत्वपूर्ण घटक है। यह एकाग्रता को बढ़ाता है। ध्यान चिंतन – मनन की एक क्रिया है। ध्यान बैठकर ज्ञानमुद्रा अथवा ध्यानमुद्रा धारण करके, मेरुदंड (कमर) को सीधा रखकर किया जाता है। अपनी भौहों के बीच हल्का सा ध्यान केंद्रित करें और अपनी आती – जाती श्वासों को महसूस करें।

योगाभ्यास के बाद

  • योग सत्र का समापन सदैव ध्यान, शांति-पाठ, मौन आदि से करना चाहिए।
  • योगाभ्यास के 20 – 30 मिनट बाद ही स्नान करना चाहिए।
  • योगाभ्यास के 20 – 30 मिनट बाद ही आहार ग्रहण करना चाहिए।
  • योगाभ्यास के परिणाम आने में कुछ समय लगता है इसलिए लगातार और नियमित अभ्यास आवश्यक है।

किन स्थितियों में योगाभ्यास नहीं करना चाहिए

  • अपनी शारीरिक एवं मानसिक सीमाओं एवं क्षमता के अनुसार ही योगाभ्यास करना चाहिए ।
  • थकावट, बीमारी, जल्दबाजी एवं तनाव की स्थिति में योग नहीं करना चाहिए।
  • यदि पुराने रोग, पीड़ा एवं ह्रदय संबंधी समस्याएं हो तो ऐसी स्थिति में योगाभ्यास शुरू करने के पूर्व चिकित्सक या योग – विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए।

  • गर्भावस्था एवं मासिक धर्म के समय योग करने से पहले चिकित्सक या योग – विशेषज्ञ परामर्श लेना चाहिए।

Disclaimer: credit for videos shown here is with Ministry of Ayush, Govt. of India and MyGov India. It is strongly recommended that you consult with your physician before beginning any exercise program. If you do such exercise, you do it at your own risk voluntarily, all risk of any injury to yourself and you agree to release and discharge Vagdevi Vidyapeeth from any and all claims or causes of action, known or unknown. 

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